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स्कूलों में मातृभाषा में शिक्षा: लाभ, सीमाएं और शिक्षकों की भूमिका | NEP 2020 विशेष

educationjhar
Last updated: 31/05/2025 22:57
educationjhar
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5 Min Read
मातृभाषा में शिक्षा
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अब सभी सरकारी, निजी एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों (अल्पसंख्यक विद्यालयों सहित) में कक्षा 1 से 5 तक की शिक्षा मातृभाषा में दी जाएगी। NEP 2020 के तहत भारत के झारखण्ड सहित सभी राज्यों के प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा में शिक्षा या क्षेत्रीय भाषा या स्थानीय भाषा में देने पर ज़ोर दिया गया है। इस नीति के पीछे यह विश्वास है कि बच्चे अपनी पहली भाषा में बेहतर सीखते हैं। इसका उद्देश्य है कि बच्चे घर की उस भाषा में सीखें जिसमें वे सोचते और समझते हैं, साथ ही घर में बात करते हुए सुनते है।

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Contents
स्कूलों में मातृभाषा में शिक्षा से लाभमातृभाषा आधारित शिक्षा की सीमाएंशिक्षकों की भूमिका

पोलैंड रूस, चीन, जर्मनी, और इटली जैसे देश अपने छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाते हैं। दुनिया के ज़्यादातर देश स्कूल से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई स्थानीय भाषा में ही कराते हैं। माना जाता है कि जब बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ते हैं, तो वे पढ़ाई में ज़्यादा रुचि लेते हैं और चीज़ों को जल्दी और अच्छी तरह समझते हैं।

मातृभाषा में शिक्षा

स्कूलों में मातृभाषा में शिक्षा से लाभ

मातृभाषा में शिक्षा के कई लाभ हैं, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं।पढ़ाते समय शिक्षकों के सामने भी नई चुनौतियाँ आएगी । राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को उनकी घरेलू भाषा या मातृभाषा में पढ़ाया और सिखाया जाएगा।

NEP 2020 के तहत, सरकारी स्कूलों में मातृभाषा में पढ़ाने-सिखाने से बच्चों को निम्नलिखित लाभ होंगे:

  • ☯️ बेहतर समझ और सीखने की गति बढ़ेगी। बच्चे नई बातें तब बेहतर समझते हैं जब भाषा जानी-पहचानी हो। इसे जटिल विषय भी सरल लगेंगे ।
  • ☯️ सोचने और सवाल पूछने की आज़ादी मिलेगी। मातृभाषा में बच्चे स्वतंत्र रूप से निडर होकर प्रश्न पूछ सकते हैं। उनमे डर या हिचक नहीं होगी।
  • ☯️ बच्चों में छीजित दर में कमी आएगी। पूर्व परिचित भाषा होने के कारण बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • ☯️ जब बच्चे भाषा की वजह से कक्षा में दूसरे से पिछड़ते नहीं हैं, तो वे स्कूल छोड़ने की बजाय नियमित अध्ययन करते हैं। इससे ड्रोपआउट की समस्या ख़त्म हो सकती है।
  • ☯️ मातृभाषा ही एक ऐसा साधन है , जो बच्चे की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक पहचान की भाषा होती है।घर की भाषा में पढ़ाई से वे अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और अपनी सांस्कृतिक विरासत को अच्छी तरह से समझते हैं।

मातृभाषा आधारित शिक्षा की सीमाएं

राज्य के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ एक ही गाँव में कई क्षेत्रीय भाषाएँ बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए, राँची जिले के सिल्ली और सोनाहातू या जमशेदपुर जिले के कुछ गांवों में, एक ही गाँव के अलग-अलग टोले में रहने वाले लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं। जैसे- किसी टोले के लोग बांग्ला बोलते हैं, तो किसी में कुरमाली, पंचपरगनिया या खोरठा, और वहीं किसी अन्य टोले की मातृभाषा मुण्डारी होती है। ऐसे में एक ही स्कूल में इतनी विविध मातृभाषाओं में पढ़ाई कराना शिक्षकों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

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नवोदय विद्यालय , इंदिरा गाँधी विद्यालय, नेतरहाट विद्यालय, सैनिक विद्यालय, कस्तूरबा गाँधी विद्यालय, सीएम एक्सेलेंट विद्यालय, मॉडल विद्यालय, पिछड़ी आवासीय विद्यालय प्रवेश प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी या अंग्रेजी में होती हैं, जिससे मातृभाषा में पढ़ने वाले छात्रों को दिक्कत हो सकती है ।

शिक्षकों की भूमिका

मातृभाषा में पढ़ाई मुख्यतः कक्षा 1 से 5 तक शुरू होगी, और धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जाएगा। यह प्रक्रिया NEP 2020 के तहत राज्यों की शिक्षा नीतियों के अनुसार और संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर लागू की जाएगी। मातृभाषा में पढ़ाने का कार्य शिक्षकों के लिए भी एक चुनौतीपूर्ण होगी।

शिक्षकों को दोहरी भूमिका निभानी होगी। एक ओर बच्चों को उनकी मातृभाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना, और दूसरी ओर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए द्विभाषिक रूप से तैयार करना, ताकि बच्चा अपनी मातृभाषा पर मजबूत पकड़ बनाए साथ ही दूसरी भाषाएं (जैसे हिंदी या अंग्रेज़ी) सीखना भी उसके लिए आसान हो ।

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