जब कोई सरकारी शिक्षक या सरकारी कर्मचारी रिटायर होता है, तो उसे उसकी बची हुई अर्जित छुट्टियों (Earned Leave) का नकद भुगतान (Cash Payment) मिलता है। नियम के अनुसार, अधिकतम 300 दिन की छुट्टियों का नकद भुगतान किया जा सकता है।
अक्सर सरकारी कर्मचारियों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है कि जब वे अर्जित अवकाश पर जाते हैं, तो उस अवकाश अवधि को उनके 300 दिनों की अर्जित अवकाश सीमा से घटा दिया जाता है। परिणामस्वरूप, सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें छुट्टी नकदीकरण का भुगतान 300 दिनों से कम अवधि के लिए मिलता है, जबकि उनके खाते में 300 दिनों से अधिक अर्जित अवकाश शेष होता है।
यह सब अक्सर नियमों की गलत जानकारी या उनके अनुचित व्याख्या के कारण होता है, जिसका खामियाज़ा अंततः सरकारी शिक्षकों और कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है।
अर्जित छुट्टी नकदीकरण का अर्थ होता है?
सेवा के दौरान संचित (जमा की गई) छुट्टियों की नकद में भरपाई (भुगतान) जब कर्मचारी सेवा से सेवानिवृत्त होता है या नौकरी छोड़ता है, तब उसके पास जो अर्जित अवकाश (Earned Leave) बचा होता है, उसे वह पैसे में बदलकर (नकद रूप में) प्राप्त कर सकता है।
सरल भाषा में कहें तो : मान लीजिए कि एक सरकारी कर्मचारी के खाते में 300 दिन की अर्जित छुट्टी बची हुई है और उसने इनमें से छुट्टी नहीं ली। जब वह सेवानिवृत्त होता है, तो सरकार उसे उन छुट्टियों का पैसा देती है, जैसे कि वह उन दिनों ड्यूटी पर रहा हो।
अधिकतम 300 दिन तक की अर्जित छुट्टी का नकदीकरण (encashment) किया जा सकता है। इसका भुगतान मूल वेतन + महंगाई भत्ता (DA) के आधार पर किया जाता है। यह सुविधा सेवानिवृत्ति, मृत्यु, या कुछ मामलों में अवकाश पर जाने के समय दी जाती है।
उदाहरण:
कर्मचारी ‘A’ सेवानिवृत्ति के समय तक 300 दिन की छुट्टी जमा कर पाता है। अगर उसका मासिक वेतन ₹60,000 है, तो 300 दिन का भुगतान लगभग:
₹60,000 ÷ 30 (महीने के दिन) = ₹2,000 प्रति दिन
₹2,000 × 300 दिन = ₹6,00,000
तो सरकारी कर्मचारी को ₹6 लाख रुपये अर्जित छुट्टी नकदीकरण के रूप में मिलेंगे।
कोर्ट का फैसला
यह मामला दो सेवानिवृत्त कर्मचारियों , जयपाल फोगट और जयभगवान से जुड़ा है, जो पहले मैकेनिक के पद पर कार्यरत थे। इन दोनों ने अदालत में एक याचिका (रिट याचिका) दायर की क्योंकि उनका कहना था कि सरकार ने उनकी बची हुई अर्जित छुट्टियों का सही हिसाब नहीं लगाया और उन्हें पूरी रकम नहीं दी गई। उदाहरण के तौर पर:
जयपाल फोगट के पास कुछ वर्षों में 362 दिन, 375 दिन, और 335 दिन की छुट्टियाँ बची थीं, लेकिन सरकार ने इसे घटाकर हर बार सिर्फ 300 दिन मान लिया यानी हर बार फालतू छुट्टियाँ हटा दी गईं।
यही गलती जयभगवान के साथ भी हुई उनके पास 308, 307, और 305 दिन की छुट्टियाँ थीं, लेकिन हर बार सिर्फ 300 दिन गिनकर बाकी हटा दिए गए।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ,चंडीगढ़ में जब यह मामला आया तो कोर्ट ने अपने फैसले में कहा की कोई कर्मचारी अधिकतम 300 दिन की छुट्टियों का नकद भुगतान ले सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अगर किसी समय उसके पास इससे ज्यादा छुट्टियाँ थीं, तो उन्हें हटा दिया जाए या अनदेखा किया जाए। छुट्टियाँ तब तक जमा होती रहती हैं जब तक कर्मचारी रिटायर नहीं हो जाता। रिटायरमेंट के समय जो छुट्टियाँ बची हैं, उनमें से अधिकतम 300 दिन का भुगतान किया जाना चाहिए।
नतीजा
जयपाल फोगट को सिर्फ 257 दिन का भुगतान मिला था, जबकि उन्हें 300 दिन के लिए मिलना चाहिए था। जयभगवान को 211 दिन का भुगतान मिला था, जबकि उन्हें 268 दिन का मिलना चाहिए था।
अदालत का आदेश
दोनों को उनका बकाया पैसा ब्याज के साथ मिलना चाहिए। 9% सालाना ब्याज लगेगा, गिनती रिटायरमेंट की तारीख से लेकर भुगतान की तारीख तक होगी ।यह पैसा 2 महीने के भीतर उन्हें देना होगा।
अर्जित छुट्टी नकदीकरण का सरल निष्कर्ष:
अधिकतम नकद भुगतान 300 दिन का होता है,लेकिन छुट्टियों की गणना करते समय पुराने रिकॉर्ड से कटौती करना गलत है। अर्थात सरकारी शिक्षक या कर्मचारी पूर्व में कितनों भी दिन अर्जित अवकाश में हो, सेवानिवृत्ति के समय 300 या उससे अधिक बचे हो तो अधिकत्तम 300 दिनों तक का अर्जित अवकाश की गणना करके भुगतान किया जाना चाहिए।